July 14, 2025

मुख्यमंत्री धामी बोले संस्कृत हमारी मूल भाषा

0
IMG_20250321_171546
Getting your Trinity Audio player ready...

रुड़की (देशराज पाल)। केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय नई दिल्ली एवं पतंजलि विश्वविद्यालय, हरिद्वार के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित 62वीं अखिल भारतीय शास्त्र स्पर्धा का आयोजन 18 से 21 मार्च तक किया जा रहा है। समापन समारोह में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने बतौर मुख्य अतिथि शिरकत की। योग गुरु स्वामी रामदेव, आचार्य बालकृष्ण, पूर्व मुख्यमंत्री डॉक्टर रमेश पोखरियाल निशंक, विधायक प्रदीप बत्रा, रुड़की मेयर अनीता देवी अग्रवाल एवं उनके पति ललित मोहन अग्रवाल मौजूद रहे।
मुख्यमंत्री धामी ने कहा कि संस्कृत हमारी मूल भाषा है, जो सत्य और प्रामाणिकता पर आधारित है। ऐसे आयोजनों के माध्यम से हम इस अमूल्य धरोहर को आने वाली पीढ़ियों तक पहुंचाने में सफल होंगे। उन्होंने इस बात पर बल दिया कि ज्ञान और कलाओं की आधारशिला संस्कृत ही है।उन्होंने कहा कि भारतीय ज्ञान परंपरा बाहरी आक्रमणों के कारण अनेक चुनौतियों और षड्यंत्रों से गुजरी है, लेकिन इसके बावजूद हमारी संस्कृति, संस्कृत भाषा और शास्त्र आज भी प्रासंगिक और सशक्त हैं। पश्चिमी दृष्टिकोण ने संस्कृत को केवल कर्मकांड तक सीमित कर हमारे मन में हीनता भरने का प्रयास किया, जबकि संस्कृत किसी भी क्षेत्र में व्यक्ति को समर्थ बनाती है। रमेश पोखरियाल निशंक ने कहा कि यदि हमारे पीछे शास्त्र, संस्कृत और संस्कृति नहीं होती, तो हमारा अस्तित्व ही संकट में पड़ जाता,उन्होंने कहा कि भारतीय इतिहास ही वास्तविक रूप में विश्व का इतिहास है, और आज हम वैश्विक मंच पर अपनी शास्त्रीय परंपराओं एवं ज्ञान-विज्ञान के कारण पुनः प्रतिष्ठित हो रहे हैं। केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, नई दिल्ली के कुलपति प्रो. श्रीनिवास वरखेड़ी ने अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में कहा कि संस्कृत भाषा केवल एक सम्प्रेषण का माध्यम नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति की आत्मा है। उन्होंने कहा कि यह अखिल भारतीय शस्त्रीय स्पर्धा संस्कृत भाषा के संरक्षण और प्रचार-प्रसार के लिए एक महत्वपूर्ण मंच है। इस प्रतियोगिता के माध्यम से विद्यार्थियों को वैदिक साहित्य, दर्शन, व्याकरण, न्याय, ज्योतिष, साहित्य और संगीत जैसी विविध विधाओं में न केवल अपने ज्ञान का प्रदर्शन करने का अवसर प्राप्त होता है, बल्कि वे एक दूसरे से सीखकर संस्कृत के गूढ़ रहस्यों में भी निपुण बनते हैं।उन्होंने कहा कि 62वीं अखिल भारतीय शास्त्रीय स्पर्धा न केवल संस्कृत भाषा के गौरवशाली इतिहास का प्रतीक है, बल्कि भारत की सांस्कृतिक विरासत को संजोने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम भी है। प्रो. वरखेड़ी ने पतंजलि विश्वविद्यालय और इसकी सहयोगी संस्थाओं को भारत के स्वाभिमान का प्रतीक बताते हुए कहा कि पतंजलि भारतीय ज्ञान परंपरा को पुनर्स्थापित करने का अभिनव कार्य कर रहा है। उन्होंने विद्यार्थियों को संबोधित करते हुए कहा कि शास्त्र पढ़कर केवल परीक्षा उत्तीर्ण करना ही पर्याप्त नहीं है, बल्कि उसे अपने जीवन का अभिन्न अंग बनाना चाहिए। भारतीय शिक्षा बोर्ड के कार्यकारी अध्यक्ष डॉ. एन. पी. सिंह और संगीत नाटक अकादमी की अध्यक्ष डॉ. संध्या पुरेचा ने भी भारतीय ज्ञान परंपरा, संस्कृति और संस्कृत भाषा को लेकर महत्वपूर्ण विचार व्यक्त किये। इस अवसर पर पतंजलि विश्वविद्यालय के मानविकी एवं प्राच्य विद्या संकायाध्यक्ष एवं कुलानुशासिका प्रो. साध्वी देवप्रिया, पतंजलि विश्वविद्यालय के प्रतिकुलपति प्रो. मयंक कुमार अग्रवाल, दूरशिक्षा निदेशक प्रो. सत्येंद्र मित्तल, कुलसचिव आलोक कुमार सिंह, कुलानुशासक स्वामी आर्षदेव सहित पतंजलि विश्वविद्यालय, हरिद्वार तथा केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, नई दिल्ली के संकाय सदस्य, विद्यार्थी, शोधार्थी और देश के कोने-कोने से पधारे विद्वतजन उपस्थित रहे।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

You cannot copy content of this page