अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर विशेष: टुकड़ों में भी कटतीं अब, कपट के प्यार में बेटी…

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मनाते ही रहे हर साल, महिला के दिवस हम सब,
सुरक्षा हक न दे पाए,अभी तक भी यहाँ हम सब।
लिखे जाते रहे हैं लेख, महिला की सुरक्षा पर,
मगर अब भी खबर छपतीं,दरिंदी यातनाओं पर।
टुकड़ों में भी कटतीं अब, कपट के प्यार में बेटी,
विलखते बाप- माँ तड़पें,कि पाए न्याय वह बेटी।
सबूतों के जुटाने को ,भटकते शोक में परिजन,
मगर निश्चित नहीं फिर भी,सजा पा जायँ वे दुर्जन।
बहुत माँ- बाप समझाते, नहीं जब मानतीं बेटी,
ठगों की वासना के जाल में, पग डालतीं बेटी।
लुटे अस्मत, मिटे रौनक, लुटे परिवार से बेटी,
दरिंदों की दरिंदी झेलतीं , तन त्यागतीं बेटी।
कहाँ तक दोष किसको दें?समझ में बात ना आतीं,
बुराई है यहाँ पग- पग, परोसी रात- दिन जातीं।
जो ढूँढें तो बहुत कारण, बुरे जालों में फँस जातीं,
वहाँ तो कोबरा छिपते, डँसी तब नारियाँ जातीं।
इन्हें पहचान करवाना, सदा ही फूल-काँटों की,
इन्हें हर मान- मर्यादा, हो शिक्षा गूढ़ बातों की।
इन्हें शिक्षा में सामग्री , इन्हें संस्कार देना है,
सही संगति, सही चिंतन, सुरक्षित मार्ग देना है।
🙏- राम शंकर सिंह